अवधेश कुमार मिश्र |
रामलीला मैदान में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद दिल्ली के आठवें मुख्यमंत्री बने अरविंद केजरीवाल के दिए भाषण से ही यह सवाल उठता है.
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद दिए अपने भाषण में कहा है कि 49 दिनों के उनके पिछले शासनकाल में ही दिल्ली से भ्रष्टाचार
खत्म हो गए थे, घूस लेने से भ्रष्टाचारी घबराने लगे थे. लेकिन उनकी सरकार के जाने के बाद दिल्ली में फिर से भ्रष्टाचार कायम हो गया.
इस बार उन्होंने दिल्ली की जनता से एक बार फिर वही बात दुहराई है जो उन्होंने पिछले साल कही थी. उन्होंने दिल्ली की जनता से कहा है कि अगर आप से दिल्ली में कोई घूस मांगे तो मना मत कीजिएगा बल्कि उससे डील कर उसका रिकॉर्डिंग भेज दीजिएगा. कहने का मतलब उन्हों जनता के सामने एक बार फिर वही हनक दिखाई है जो पिछले साल सरकार छोड़ने से पहले दिखाई थी.
लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी जनता को इस बार कोई समय सीमा नहीं दी है. बल्कि मीडिया के दबाव बनाए जाने पर उल्टे उन्हें ही नसीहत दे दी है कि दिल्ली की जनता ने उन्हें पांच साल के लिए चुना है. इसलिए वादा पूरा करने के लिए उनके पास पांच साल का वक्त है.
ध्यान रहे कि यही बात अमूमन दूसरे राजनीतिक दल भी सत्ता मिलने के बाद कहते रहे हैं . अगर केजरीवाल की बात को ही सत्य मान लिया जाए तो दिल्ली का चुनाव परिणाम मोदी सरकार के खिलाफ कतई नहीं कहा जा सकता है.
क्योंकि केंद्र की सत्ता में आए हुए मोदी सरकार को महज 9 महीने ही हुए हैं. दूसरी बात ये कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही बीजेपी की सरकार भी तो देश की जनता से यही कह रही है कि वह पांच साल में अपने सारे वादे निभाएगी.
दिल्ली के आठवें मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने भाषण के दौरान कहा है कि वे दिल्ली की जनता से किए गए सारे वादे पूरे करेंगे, लेकिन पांच साल में. इसलिए उन्होंने मीडिया से आग्रह किया है कि वे समय सीमा का दबाव उन पर न बनाएं.
अब सवाल उठता है कि आखिर मुख्यमंंत्री केजरीवाल मीडिया से समय सीमा का दबाव नहीं बनाने की बात क्यों कर रहे हैं?
जबकि मीडिया तो वही बात जनता के सामने लाएगी जो उन्होंने कही है. और इसमें भी कोई शक नहीं है कि देश की जनता सभी की नीयत भलीभांति जानती है. केजरीवाल तो स्वयं भी हमेशा नीयत की ही बात करते हैं, ऐसे में अगर उनकी नीयत सही है तो फिर मीडिया से अनुरोध क्यों?
भगवान करे अरविंद केजरीवाल दिल्ली की जनता की उम्मीदों पर खड़े उतरें और उनके हाथ से वे सारे वादे पूरे हों जो उन्होंने चुनाव के दौरान दिल्ली की जनता से किए हैं. लेकिन संदेह होता है, और इसका कारण भी है.
ध्यान रहे कि चुनाव परिणाम आने के बाद ही दो दिनों में अरविंद केजरीवाल ने अपने निकतम सहयोगी मनीष सिसोदिया के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा जिन दो केंद्रीय मंत्रियों के साथ मुलाकात कि उनमें से एक देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह और शहरी विकास मंत्री वैंकैया नायडू थे.
चुनाव के बाद विशेषकर इतनी बड़ी अप्रत्याशित जीत के कारण इस प्रकार की भेंट को सहज ही कहा जा सकता था. लेकिन संशय तब और गहरा जाती है जब भेंट के दौरान हुई चर्चा का विषय सामने आया है.
कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री समेत दोनों केंद्रीय मंत्रियों से भेंट के दौरान केजरीवाल ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की है.
क्या आपको नहीं लगता है कि ये मांग आने वाले समय में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच होने वाली रार की पटकथा की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है? या फिर अपनी असफलता का ठीकरा फोड़ने का कोई दूसरा सर खोजने की तैयारी की जा रही है.
जहां तक दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त करने की बात है तो फिर पांच साल का वक्त क्यों चाहिए जब केजरीवाल विगत एक साल से ढिंढोरा पीटते आ रहे हैं कि 49 दिनों की उनकी सरकार के दौरान दिल्ली से भ्रष्टाचार खत्म हो गया था.
किसी की हिम्मत नहीं थी कि उस दौरान कोई किसी से घूस ले. जब 28 विधायक के साथ बनी सरकार 49 दिनों में दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त करा सकती है तो फिर 70 में से 67 विधायकों के साथ प्रचंड बहुमत से सत्ता में आने वाली सरकार की आने की खबर से ही दिल्ली से भ्रष्टाचार को भाग जाना चाहिए.
तो फिर केजरीवाल को इस बार भ्रष्टाचार से दिल्ली को मुक्त करने के लिए पांच साल का वक्त क्यों चाहिए? इसलिए जेहन में बार-बार यह सवाल उठ रहा है कि क्या दिल्ली देश का पहला भ्रष्टाचार मुक्त राज्य बन पाएगी.
-अवधेश कुमार मिश्र
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