राजनीति में अपना परचम लहराने के लिए तरह- तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं और इन्हीं हथकंडों में ब्रह्मास्त्र का काम पार्टी का मेनिफेस्टो करता है. जिसका प्रभाव वोटरों पर अचूक होता है.
आप के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने अपने 70 सूत्रीय एक्शन प्लान की घोषणा करते हुए कहा कि यह मेनिफेस्टो उनके लिए धर्मग्रन्थ की तरह है.
उन्होंने कहा कि इसके लिए
उन्होंने 4 महीने तक कड़ी मेहनत की है और इस बार हर वर्ग की भागीदारी चाहते हैं. जो पिछली बार शायद नहीं मिली थी.
पिछली बार उन्होंने
राजनीति बदली थी और राजनीति ने इस बार उनको बदल दिया.
ये आप का मेनिफेस्टो
कम बल्कि हर वर्ग के लोगों की मनचाही मुराद ज्यादा लगती है. चाहे बच्चों की शिक्षा हो, युवाओं के लिए रोजगार हो, व्यापारियों को सुविधा देने की बात हो, महिला सुरक्षा की बात हो, बुजूर्गों के स्वास्थ्य की चिंता सता रही है केजरीवाल को, पूरी दिल्ली को ऑनलाइन करने की बात कर रहे हैं.
केजरीवाल ने दिल्ली में जितने सीसीटीवी लगाने की बात की अपने मेनिफेस्टो में उतना तो 3 साल का दिल्ली का बजट है. कुल मिलाकर आप के मेनिफेस्टो में वो सारी चीजें हैं, जो दिल्लीवासियों को एक जिन्न हीं दे सकता है.
अब केजरीवाल बहुत हद तक देश की राजनीति को समझ चुके हैं कि यहां राजनीति उन्हें हीं रास आती है
जो वादे करना जानते हैं निभाना नहीं.
जो वादे करना जानते हैं निभाना नहीं.
तभी तो केजरीवाल ने 8 लाख नई नौकरियां देने का वादा किया है. वो कहते हैं कि दिल्ली ऐसी होगी की सबको गर्व होगा. पर आप के
मेनिफेस्टो से गर्व कम भ्रम ज्यादा लगता है.
दिल्लीवासियों को पता नहीं जिस मेनिफेस्टो को तैयार करने में 4 महीने लग गए उसे पूरा करने में कितने साल लगेंगे.
अब कांग्रेस
अपने मेनिफेस्टो का दूसरा पार्ट निकालेगी, बीजेपी मेनिफेस्टो निकालना नहीं चाहती क्योंकि फिलहाल मेनिफेस्टो की लड़ाई में तो आप ने सबको पीछे छोड़ दिया है और इन सबके बीच पहले जनता नेता से और अब मेनिफेस्टो रूपी जिन्न से परेशान है.
-समीर कुमार ठाकुर
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