मिड डे मील योजना के नाम पर बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ होता है, जबकि यह योजना काफी समय से चली आ रही है.
मिड डे मील योजना में की बारह लाख स्कूलों में करीब साढ़े दस करोड़ बच्चों को दोपहर का भोजन दिया जाता है.
केंद्र सरकार इस योजना में करीब पंद्रह हज़ार करोड़ खर्च करती है, इसे बनाने के लिए सताईस लाख रसोएये काम
करते है.
केंद्र सरकार की इस योजना को सफल बनाने के लिए राज्य की सरकारों को पूरा धयान देना चाहिये क्योंकि ये उनकी ज़िम्मेदारी है.
पिछले दिनों बिहार के छपरा में मिड डे मील खाने से तेईस बच्चों की मौत हुई और पहले भी कई बार पढ़ने और सुनने में आया है कि मिड डे मील में ख़राब भोजन परोसा गया है जिसे खाने के बाद बच्चे बीमार हुए हैं.
इसके कई कारण हो सकते है, पहला तो यह कि जो कर्मचारी खाना पकाते है उनको कम वेतन मिलता है जिससे की वह बेमन से काम करते है.
इसलिए रसोईयों की तन्खाह बढाई जाये, दूसरी वजह कर्मचारियों के पास ज्ञान का अभाव है इसलिए वे कीटनाशक के डिब्बे का इस्तेमाल खाना बनाने में कर गये.
ऐसे में उन्हें खाना बनाने के तौर तरीके बताये जाये. जहाँ खाना बनता है और जिन बर्तनों में पकता है वहां पूरी साफ सफाई का धयान रखा जाये.
तीसरा कारण यह है क़ि हमारे यहां सामाजिक निगरानी की व्यवस्था नहीं है स्थानीय लोगों की भागीदारी इसमें होनी चाहिए.
सामान से लेकर खाना बनाने और परोसने तक की ज़िम्मेदारी एक निरीक्षक अधिकारी की मौजूदगी में हो. जो वस्तुओं की जाँच परख कर मिड डे मील तैयार करवाए. क्योंकि बच्चें देश का भविष्य होते हैं इनकी जान के साथ खिलवाड़ उचित नहीं है.
-सुगंधा झा
1 comment:
Aaj bachche school khane jate hain na ki padhne, sarkar kehti hai pehle khilao padhana bad me. Iska management totally third party ke pas honi chahiye.
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